' चाहे राजनीतिक झगड़ा हो आ चाहे कौनो झगड़ा हमसे थोड़े ही कोई जीत सकता है '! चूंकि मैं बिहार से हूं इसलिए मुझे बिहारी भाषा बोलने में कोई परेशानी नहीं होती , सो मैंने शुरू में ही ऐलान कर दिया है कि कोई हमसे कौनो लड़ाई में जीतिए नहीं सकता है। यहां इतना कह कर फिलहाल मैं अपनी डींगे हांकना बंद करता हूं और आज चर्चा करते हैं बिहार की राजनीति में भाषा के मान-मर्यादा की जो सालों से ताक पर रखे-रखे अब सड़ गई है। मौजूदा दौर में राज्य में चल रही राजनीतिक दुश्मनी ने इस सड़ी भाषा की बदबू को और भी दुश्वार कर दिया है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा कड़ी और सड़ी बयानबाजी देकर इस बू को बिहार की आबोहवा में फैला रहा है और बेचारी जनता को यह समझ नहीं आ रहा है कि वो हाथ नाक पर रखे , कान पर रखे या फिर माथे पर। मेरे विचार से माथे पर हाथ रखना ज्यादा उचित होगा क्योंकि बिहार के राजनेताओं की ऐसी कड़वी बोली राज्य के राजनीतिक भविष्य को सियासी सड़ांध की ओर ले जाने का काम रही है जो निश्चित तौर पर गौरवमयी बिहार के माथे पर चिंता की लकीर भी खींच रही है। तो अब आप भी माथे पर हाथ रख लीजिए क्योंकि अब अगले कुछ अनमोल वाक्यों
दुनिया आतंकवादियों के 'रक्तचरित्र' को जानती है। सबको मालूम है कि आतंकवादी बंदूक की नोक पर युवाओं और बेगुनाहों के लहू से जिहाद लिखने को बेताब हैं। लेकिन सच यह है कि अब यह दहशतगर्द भी समझ गए हैं कि ना तो उनकी इस बेकरारी को कभी करार मिलने वाला है और ना ही वो लहू के समंदर से जेहाद का मंथन कर पाने में कभी कामयाब हो सकेंगे। इसमे कोई शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में आतंकवादियों ने पाकिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका, और भारत समते दूसरे कई देशों में जो दहशतगर्दी फैलाई है उसके जख़्म अरसे तक नहीं भरेंगे। लेकिन अगर नई सोच और नए नज़रिये से देखें तो ये दहशतगर्द खुद भी कितनी दहशत में हैं इसका अंदाजा हमे लग जाएगा। मिस्र में जुमे की नमाज के वक्त अपने ही लोगों पर कायरता आतंकियों के हताशा और उनकी डरी हुई मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। सच यह है कि मिस्र में आतंकी आम लोगों के बीच अपना पैग़ाम-ए-दहशत पहुंचा पाने में लगातार बुरी नाकाम हो रहे थे और यह हमला इसी नाकामी की प्रतिक्रिया है। मिस्र एक सुन्नी बहुल देश है और सुन्नी लोग किसी तरह के आतंक को गुनाह समझते हैं। सूफी मत में खुदा को अपने भीतर तलाशने का स्
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