अमृतसर रेल हादसा: वो किसे जला रहे थे? 'रावण' तो ट्रेन पर सवार था
शुक्रवार (19-10-2018) की शाम उस वक्त ऑफिस में लगे एक टीवी स्क्रीन से नजर नहीं हट रही थीं जब लाल किले के लव कुश रामलीला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनुष पर बाण चढ़ाकर रावण को मारा। रावण वध के वक्त शाम घिर गई थी और मैं ऑफिस से इत्मीनान होकर निकला की अब रावण का कोई डर नहीं। लेकिन महज आधे घंटे के बाद ही यह जानकर मैं सन्न रह गया कि जिस रावण को थोड़ी देर पहले मारा गया है वो तो सिर्फ पुतला था। असली रावण तो अमृतसर में एक ट्रेन पर सवार था जो दनदनाता हुआ आया और कई जिंदगीयां लील कर चला गया। यहां सैकड़ों लोग रेल की पटरियों पर खड़े होकर दूर जल रहे रावण के पुतले को निहार रहे थे और थोड़ी देर के लिए उन्हें भी यह भ्रम हो गया था कि रावण तो मारा गया लेकिन असली रावण की एंट्री तो अभी बाकी थी। जालंधर से अमृतसर जारी रही ट्रेन ठीक उसी वक्त डरावनी अट्टाहस करती हुई 100 की स्पीड में आई और ट्रैक पर खड़े लोगों के टुकड़े बिखेर कर चली गई। ट्रेन के गुजरने के बाद वहां विजयादशमी की खुशियां एक साथ सैकड़ों परिवारों के लिए मातम बन गईं। यकीन मानिए रेलवे ट्रैक की तस्वीरों को बयां करना इतना आसान नहीं। अंधेरे में दूर-दूर तक क्षत-विक्षत पड़े शवों में अपने ही अपनों को पहचान नहीं पा रहे थे। किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि जिन्होंने मेले में अभी-अभी रंग-बिरंगे सामान खरीदे थे अब उन्हीं के लिए कफन खरीदने का इंतजाम करना होगा। क्या करेंगे यह जानकर की हादसे में मरने वालों की संख्या कितनी है? बस इतना समझ लीजिए की एक साथ बच्चे, बूढ़े और जवानों की इतनी अर्थियां उठी हैं कि आसमान के भी आंसू कम पड़ जाएं।
लेकिन अगर आप यह समझ रहे हैं कि सभी का दिल दहलाकर, आंखों में खौफ भरकर, नींदे उड़ाकर और सैकड़ों परिवारों को गमों के समंदर में डूबा कर रावण चला गया है तो माफ करियेगा मुझे ऐसा नहीं लगता। दरअसल यह बात अब समझ आई है कि हर साल आखिर रावण मरता क्यों नहीं? हम जिस पुतले को हर साल मार देते हैं यकीन मानिए रावण तो उस पुतले में रहता ही नहीं वो तो इस धरती पर बहुत पहले ही इंसान का रुप धारण कर हमारे बीच ही रहने लगा है। जरा समझिए इस बात को, कि रेलवे ट्रैक पर इतने सारे लोगों जमा हैं और पुलिस-प्रशासन को उनकी कोई फिक्र नहीं। क्या अगर प्रशासन मुश्तैद रहती तो लोगों की इस भीड़ को ट्रैक पर जमा होने से रोका नहीं जा सकता था? रामलीला के आयोजकों को इस भीड़ के बारे में अंदाजा नहीं था क्या? क्या आयोजकों को इस बात की सावधानी नहीं बरतनी चाहिए थी कि किसी भी कीमत पर रेलवे ट्रैक के आसपास भीड़ को जमा ना होने दें।
सैकड़ों लोग बड़ी ही बेपरवाही के साथ ट्रैक पर खड़े हैं और अचानक ट्रेन आकर उनके ऊपर चढ़ जाती है। यह बात सुनने में ही अजीब सी लगती है। शाम के अंधेरे में जिस वक्त रावण जल रहा था उस वक्त क्या रेलवे पुलिस कुंभकर्णी नींद में सो रही थी? क्या वहां तैनात रेलकर्मियों को पटरी पर आने वाली ट्रेन के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी या फिर जानकारी होते हुए भी उन्होंने ट्रेन को समय से पहले लाल झंडी दिखाना मुनासिब नहीं समझा? आम तौर पर जब ऐसे आयोजन होते हैं तो जिले के डीएम को आयोजन से पहले आयोजन के इंतजामों और सुरक्षा मानकों के बारे में सबकुछ बतलाना होता है। तो क्या डीएम ने भी इसे हल्के में लेकर सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज किया और इस हादसे को निमंत्रण दिया?
जरा सोचिए कि देश में ट्रेन चलाने वाला विभाग इतना लापरवाह और तकनीक के मामले में इतना पिछड़ा हुआ है कि किसी रेलवे ट्रैक पर अगर सैकड़ों लोग पहले से जमा हैं तो उसे इस बारे में पता तक नहीं चल पाता। सैकड़ों की भीड़ जो दूर से ही हर किसी को नजर आ जाती है वो देश में ट्रेन के ड्राइवर को, गार्ड को और पूरे विभाग को तब नजर आता है जब ट्रेन उन्हें कुचल कर निकल जाती है। यानी ट्रेन चला रहे विभाग को पता ही नहीं रहता की ट्रेन के पहिये इंसान के उपर चढ़ने वाले हैं या फिर पटरियों के ऊपर। अब अच्छी तरह से इस बात को जान लीजिए कि इन्हीं तीखें सवालों के जवाब में छिपा है रावण। यकीनन अब इस मामले की जांच होगी और मैं नहीं, तू नहीं, ये नहीं, वो नहीं, ऐसा नहीं, ऐसे नहीं, वाली पुराने बातें फिर से दोहराई जाएंगी। यानी रावण फिर बच जाएगा...!!!
लेकिन अगर आप यह समझ रहे हैं कि सभी का दिल दहलाकर, आंखों में खौफ भरकर, नींदे उड़ाकर और सैकड़ों परिवारों को गमों के समंदर में डूबा कर रावण चला गया है तो माफ करियेगा मुझे ऐसा नहीं लगता। दरअसल यह बात अब समझ आई है कि हर साल आखिर रावण मरता क्यों नहीं? हम जिस पुतले को हर साल मार देते हैं यकीन मानिए रावण तो उस पुतले में रहता ही नहीं वो तो इस धरती पर बहुत पहले ही इंसान का रुप धारण कर हमारे बीच ही रहने लगा है। जरा समझिए इस बात को, कि रेलवे ट्रैक पर इतने सारे लोगों जमा हैं और पुलिस-प्रशासन को उनकी कोई फिक्र नहीं। क्या अगर प्रशासन मुश्तैद रहती तो लोगों की इस भीड़ को ट्रैक पर जमा होने से रोका नहीं जा सकता था? रामलीला के आयोजकों को इस भीड़ के बारे में अंदाजा नहीं था क्या? क्या आयोजकों को इस बात की सावधानी नहीं बरतनी चाहिए थी कि किसी भी कीमत पर रेलवे ट्रैक के आसपास भीड़ को जमा ना होने दें।
सैकड़ों लोग बड़ी ही बेपरवाही के साथ ट्रैक पर खड़े हैं और अचानक ट्रेन आकर उनके ऊपर चढ़ जाती है। यह बात सुनने में ही अजीब सी लगती है। शाम के अंधेरे में जिस वक्त रावण जल रहा था उस वक्त क्या रेलवे पुलिस कुंभकर्णी नींद में सो रही थी? क्या वहां तैनात रेलकर्मियों को पटरी पर आने वाली ट्रेन के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी या फिर जानकारी होते हुए भी उन्होंने ट्रेन को समय से पहले लाल झंडी दिखाना मुनासिब नहीं समझा? आम तौर पर जब ऐसे आयोजन होते हैं तो जिले के डीएम को आयोजन से पहले आयोजन के इंतजामों और सुरक्षा मानकों के बारे में सबकुछ बतलाना होता है। तो क्या डीएम ने भी इसे हल्के में लेकर सुरक्षा मानकों को नजरअंदाज किया और इस हादसे को निमंत्रण दिया?
जरा सोचिए कि देश में ट्रेन चलाने वाला विभाग इतना लापरवाह और तकनीक के मामले में इतना पिछड़ा हुआ है कि किसी रेलवे ट्रैक पर अगर सैकड़ों लोग पहले से जमा हैं तो उसे इस बारे में पता तक नहीं चल पाता। सैकड़ों की भीड़ जो दूर से ही हर किसी को नजर आ जाती है वो देश में ट्रेन के ड्राइवर को, गार्ड को और पूरे विभाग को तब नजर आता है जब ट्रेन उन्हें कुचल कर निकल जाती है। यानी ट्रेन चला रहे विभाग को पता ही नहीं रहता की ट्रेन के पहिये इंसान के उपर चढ़ने वाले हैं या फिर पटरियों के ऊपर। अब अच्छी तरह से इस बात को जान लीजिए कि इन्हीं तीखें सवालों के जवाब में छिपा है रावण। यकीनन अब इस मामले की जांच होगी और मैं नहीं, तू नहीं, ये नहीं, वो नहीं, ऐसा नहीं, ऐसे नहीं, वाली पुराने बातें फिर से दोहराई जाएंगी। यानी रावण फिर बच जाएगा...!!!
क्यूँ हम हमेशा पुलिस-प्रशासन को गाली देते हैं? Train में सवार रावण कैसे था? वो तो चालक था, जो अपना काम कर रहा था! मुख्य कारण है ख़ुद हमारी लापरवाही, हमारी अपनी अनदेखी! क्या वहाँ ट्रैक पर बैठे लोगों को ये पता नहीं होना चाहिए था की इस पर से train गुज़रती है? ये वही मानसिकता है की हम हेल्मेट पहनते हैं, पुलिस के डर से ... ये समझ कर नहीं, हेल्मेट के बिना मेरी अपनी जान जा सकती है! अतः सबसे पहले अपने भीतर के लापरवाही, मूर्खता और अज्ञानता वाले रावण को मारें, इससे पहले की दूसरों पर उँगली उठाएँ ...
ReplyDelete... हाँ, पुलिस-प्रशासन इंतज़ाम कर सकता था! हाँ, ट्रेन का driver ब्रेक लगा सकता था ... पर आपको इतनी समझ नहीं रेल की पटरी train के परिचालन के लिए है, मेला-मस्ती के लिए नहीं!
क्या जब मेला-मस्ती के लिए रेलवे ट्रैक का इस्तेमाल किया जा रहा था उसी वक्त पुलिस-प्रशासन को इसे रोकना नहीं चाहिए था? शहर में इतना बड़ा आयोजन है वहां नेता से लेकर कई बड़ी हस्तियां मौजूद हैं, आम तौर पर ऐसे आयोजनों में लोगों की भीड़ होती ही है..तो क्या प्रशासन को चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था नहीं करनी चाहिए थी? यब बात बिल्कुल सही है कि लोगों की मानसिकता इस हादसे की बड़ी वजह है....लेकिन प्रशासकिय स्तर पर भी वहां चूक हुई है यह कहना भी गलत नहीं है। इतनी भीड़ में पुलिस-प्रशासन के लोग भी मौजूद थें क्या उन्हें एक बार भी यह नजर नहीं आया कि लोग खतरनाक रेलवे ट्रैक पर जमा हो रहे हैं? क्या प्रशासन उसी समय इन लोगों को वहां से हटाने का बंदोबस्त नहीं कर सकते था? चलिए एक बार यह भी मान लेते हैं वहां भीड़ काफी ज्यादा थी और ट्रैक से भीड़ को हटवा पाना पुलिस के लिए इतना आसान भी नहीं था, लेकिन क्या स्थानीय प्रशासन लोकल रेल प्रशासन से संपर्क कर ट्रैक की स्थिति के बारे में को-ऑर्डिनेट नहीं कर सकता था। सर, सबसे बड़ी बात यह कि इस आयोजन के लिए प्रशासन से अनुमति तो ली ही गई होगी...तो फिर प्रशासन पल्ला कैसे झाड़ सकता है?
Deleteमेरा मानना है कि अमृतसर में जो भी हुआ है एक दुखद और अप्रिय हादसा था जो नही होना चाहिए था , अगर आप इस दुखद हादसे को मर्डर कहते भी हैं तो इस मर्डर में मृतको का कातिल वो ट्रैन चालक नही बल्कि पूजा समिति के प्रबंधक और प्रशासन है उनके लिए वो नेता तो जरूरी थे , लेकिन रेलवे ट्रेक पर खड़ी जनता नही थी।
ReplyDeleteमहाराज जनसत्ता के लिए भी लिख देते
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