'ऐसी वाणी बोलिए कि जम के झगड़ा होए'!
' चाहे राजनीतिक झगड़ा हो आ चाहे कौनो झगड़ा हमसे थोड़े ही कोई जीत सकता है '! चूंकि मैं बिहार से हूं इसलिए मुझे बिहारी भाषा बोलने में कोई परेशानी नहीं होती , सो मैंने शुरू में ही ऐलान कर दिया है कि कोई हमसे कौनो लड़ाई में जीतिए नहीं सकता है। यहां इतना कह कर फिलहाल मैं अपनी डींगे हांकना बंद करता हूं और आज चर्चा करते हैं बिहार की राजनीति में भाषा के मान-मर्यादा की जो सालों से ताक पर रखे-रखे अब सड़ गई है। मौजूदा दौर में राज्य में चल रही राजनीतिक दुश्मनी ने इस सड़ी भाषा की बदबू को और भी दुश्वार कर दिया है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा कड़ी और सड़ी बयानबाजी देकर इस बू को बिहार की आबोहवा में फैला रहा है और बेचारी जनता को यह समझ नहीं आ रहा है कि वो हाथ नाक पर रखे , कान पर रखे या फिर माथे पर। मेरे विचार से माथे पर हाथ रखना ज्यादा उचित होगा क्योंकि बिहार के राजनेताओं की ऐसी कड़वी बोली राज्य के राजनीतिक भविष्य को सियासी सड़ांध की ओर ले जाने का काम रही है जो निश्चित तौर पर गौरवमयी बिहार के माथे पर चिंता की लकीर भी खींच रही है। तो अब आप भी माथे पर हाथ रख लीजिए क्योंकि अब अगले कुछ अनमोल वाक्यों