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लबर-लबर, कपार, मरखंडी, झोंटा, पेश है गुदगुदाने वाले बिहारी शब्दों की पूरी लिस्ट

'अब एकदम अन्नस बर गया है लबर-लबर कोई नहीं बोलेगा नहीं तो कूट देंगे'... !!! यकीनन पहला ही वाक्य पढ़ने के बाद आपके दिमाग में यह सवाल कौंध गया होगा कि आज यहां बात ठेठ बिहारी अंदाज में क्यों हो रही है? तो हम आपका कन्फ्यूजन दूर कर देते हैं। इस खास अंदाज में बात करने के पीछे हमारा मकसद है दुनिया को बिहार में बोली जाने वाली कुछ खास शब्दों से रुबरु कराना। यहां लोगों द्वारा किसी खास परिस्थिति में किसी खास वजह से इस्तेमाल किये जाने वाले ये शब्द जितने छोटे होते हैं उसका मतलब उतना ही बड़ा और दिलचस्प होता है। ऐसे शब्द आपको गुदगुदाते भी हैं। हमारा दावा है कि ऐसे शब्दों की यह लिस्ट पढ़कर आपको होठों पर भी मुस्कान बिखर जाएगी और टेंशन तो ' कपार'  (दिमाग) से बिल्कुल ही गायब हो जाएगा। भकुआना   'भकुआने' की जरूरत बिल्कुल नहीं है, क्योंकि अभी तो ये आगाज है और ना ही ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत है।  बस इन शब्दों को अपनी भाषा में जोड़िए और मजे लेते जाइए। दरअसल बिहारियों द्वारा बातचीत के दौरान अक्सरहा इस्तेमाल किये जाने वाले इस बेहद ही पॉपुलर शब्द (भकुआने) का मतलब होता है अचरज में प

'ऐसी वाणी बोलिए कि जम के झगड़ा होए'!

' चाहे राजनीतिक झगड़ा हो आ चाहे कौनो झगड़ा हमसे थोड़े ही कोई जीत सकता है '! चूंकि मैं बिहार से हूं इसलिए मुझे बिहारी भाषा बोलने में कोई परेशानी नहीं होती , सो मैंने शुरू में ही ऐलान कर दिया है कि कोई हमसे कौनो लड़ाई में जीतिए नहीं सकता है। यहां इतना कह कर फिलहाल मैं अपनी डींगे हांकना बंद करता हूं और आज चर्चा करते हैं बिहार की राजनीति में भाषा के मान-मर्यादा की जो सालों से ताक पर रखे-रखे अब सड़ गई है। मौजूदा दौर में राज्य में चल रही राजनीतिक दुश्मनी ने इस सड़ी भाषा की बदबू को और भी दुश्वार कर दिया है। हर कोई ज्यादा से ज्यादा कड़ी और सड़ी बयानबाजी देकर इस बू को बिहार की आबोहवा में फैला रहा है और बेचारी जनता को यह समझ नहीं आ रहा है कि वो हाथ नाक पर रखे , कान पर रखे या फिर माथे पर। मेरे विचार से माथे पर हाथ रखना ज्यादा उचित होगा क्योंकि बिहार के राजनेताओं की ऐसी कड़वी बोली राज्य के राजनीतिक भविष्य को सियासी सड़ांध की ओर ले जाने का काम रही है जो निश्चित तौर पर गौरवमयी बिहार के माथे पर चिंता की लकीर भी खींच रही है। तो अब आप भी माथे पर हाथ रख लीजिए क्योंकि अब अगले कुछ अनमोल वाक्यों

naisoch: मिस्र हमला : दहशत में क्यों हैं दहशतगर्द ?

naisoch: मिस्र हमला : दहशत में क्यों हैं दहशतगर्द ? : दुनिया आतंकवादियों के 'रक्तचरित्र' को जानती है। सबको मालूम है कि आतंकवादी बंदूक की नोक पर युवाओं और बेगुनाहों के लहू से जिहाद लिख...

मिस्र हमला : दहशत में क्यों हैं दहशतगर्द ?

दुनिया आतंकवादियों के 'रक्तचरित्र' को जानती है। सबको मालूम है कि आतंकवादी बंदूक की नोक पर युवाओं और बेगुनाहों के लहू से जिहाद लिखने को बेताब हैं। लेकिन सच यह है कि अब यह दहशतगर्द भी समझ गए हैं कि ना तो उनकी इस बेकरारी को कभी करार मिलने वाला है और ना ही वो लहू के समंदर से जेहाद का मंथन कर पाने में कभी कामयाब हो सकेंगे। इसमे कोई शक नहीं कि पिछले कुछ सालों में आतंकवादियों ने पाकिस्तान, ब्रिटेन, अमेरिका, और भारत समते दूसरे कई देशों में जो दहशतगर्दी फैलाई है उसके जख़्म अरसे तक नहीं भरेंगे। लेकिन अगर नई सोच और नए नज़रिये से देखें तो ये दहशतगर्द खुद भी कितनी दहशत में हैं इसका अंदाजा हमे लग जाएगा। मिस्र में जुमे की नमाज के वक्त अपने ही लोगों पर कायरता आतंकियों के हताशा और उनकी डरी हुई मानसिकता को ही प्रदर्शित करता है। सच यह है कि मिस्र में आतंकी आम लोगों के बीच अपना पैग़ाम-ए-दहशत पहुंचा पाने में लगातार बुरी नाकाम हो रहे थे और यह हमला इसी नाकामी की प्रतिक्रिया है। मिस्र एक सुन्नी बहुल देश है और सुन्नी लोग किसी तरह के आतंक को गुनाह समझते हैं। सूफी मत में खुदा को अपने भीतर तलाशने का स्